नेशनल डेस्कः ग्वालियर में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला है जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं. दरअसल, 15 साल पहले लापता हुए एक सब इंस्पेक्टर फुटपाथ पर मिला. जिसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है. पुलिस डिपार्टमें का एक शार्प शूटर, शानदार एथलीट ग्वालियर की सड़कों पर कचरे से खाना ढूंढकर खाने को मजबूर है.

सीनियर जर्नलिस्ट अनुराग ने ट्वीट कर लिखा, 10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात लगभग 1:30 बजे, सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे भिखारी को देखते हैं तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है और वहां से जाने लगते हैं लेकिन बेहद बुरे हाल में भिखारी जैसे ही डीएसपी को नाम से पुकाराता है तो दोनों सकते में आ गए और पलट कर जब गौर से भिखारी को पहचाना तो वो शख्स था उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा.
A Sharp shooter, good athlete who joined police force in 1999 as Sub inspector, went missing since 2005 was found by his 2 colleagues begging in a mentally deranged state shivering with cold on the footpath in Gwalior @ndtv @ndtvindia @vinodkapri @ipskabra @DGP_MP pic.twitter.com/s7Qxe1orbS
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) November 15, 2020
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10 नवंबर सुरक्षा व्यवस्था में तैनात डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदौरिय सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे भिखारी को देखते हैं तो एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट दे देता है, जैसे ही डीएसपी को नाम से पुकारता है वो शख्स था उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा. pic.twitter.com/QZJnxEoIxR
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) November 15, 2020
दरअसल, मतगणना की रात सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदौरिया के ऊपर था. दोनों विजयी जुलूस के रूट पर अपनी ड्यूटी कर रहे थे. इस दौरान बंधन वाटिका के फुटपाथ पर एक अधेड़ भिखारी ठंड से ठिठुर रहा था. इस दौरान संदिग्ध हालत में भिखारी देखअफसरों ने गाड़ी रोक बात की. डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर ने अपने जूते जबकि विजय भदौरिया ने जैकेट दे दी.
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भावुक हो गए तीनों मित्र
जूते, जैकेट देकर जैसे ही दोनों अधिकारी जाने लगे तभी भिखारी ने नाम से पुकारा. अचंभित अधिकारियों के पूछताछ करने पर अपना नाम मनीष मिश्रा बताया. दरअसल, मनीष मिश्रा इन दोनों अफसरों के साथ ही 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुए थे. पुराने साथी को इस हालत में देख अधिकारी भावुक हो गए. तीनों के आंखों से आंसू निकल रहे थे. पुराने दिनों को याद कर साथ ले जाने की जिद की लेकिन मनीष राजी नहीं हुआ. आखिरकार, मित्रों ने समाज सेवी संस्था से देखभाल के लिए आश्रम भिजवा.
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परिवार में हैं कई अधिकारी
बता दें कि मनीष मिश्रा के भाई इंस्पेक्टर, पिता और चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं. वहीं, चचेरी बहन दूतावास में पदस्थ हैं. बताया जाता है कि 2005 में दतिया जिले में पोस्टिंग के दौरान मानसिक संतुलन खो बैठे. शुरुआत के 5 साल घर पर रहे. इलाज कराने के दौरान सेंटर से भाग गए. उनका पत्नी से तलाक हो चुका है जो न्यायिक सेवा में पदस्थ हैं.
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