पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कई बाहुबली चुनावी मैदान में हैं. वहीं, कई बाहुबलियों ने अपनी पत्नी को चुनावी मैदान में उतार कर बड़ा सियासी दाव खेला है. जब बात बाहुबलियों की हो तो आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की चर्चा होना लाजमी है.
बाहुबली शहाबुद्दीन फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. बावजूद इसके चुनावी मैदान में नहीं पर भी उसकी मर्जी के बगैर सिवान में आज भी पत्ता नहीं डोलता. बाहुबली के नाम से ही लोग आज भी सिवान खौफ खाते है. एक समय था जब सिवान के शंहशाह जिसके नाम का डंका आज भी बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक बजता है.

लालू का खास आदमी था बाहुबली
शहाबुद्दीन का उदय भी बिहार के अन्य बाहुबलियों की तरह 1990 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही हुआ. जेल में बंद रहकर अपनी सियासी पारी की शुरुआत करने वाला बाहुबली पहली बार 1990 में निर्दलीय विधायक बना. इसी दौरान शहाबुद्दीन रातों-रात पहली बार सीएम बने लालू प्रसाद यादव का करीबी बन गया. लालू सेना(पार्टी) का सदस्य बनते ही बाहुबली दो बार विधानसभा और चार बार संसद पहुंच गया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी.
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विधायक ने मदद से किया था इनकार
शहाबुद्दीन की अहमियत कितनी थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार शहाबुद्दीन के नाराज होने पर खुद लालू उसको मनाने पहुंचे थे. दरअसल, शहाबुद्दीन के सियासत में इंट्री की पूरी तरह फिल्मी है. कहा जाता है कि अपने उपर पहला केस दर्ज होने के बाद शहाबुद्दीन अपने इलाके के विधायक त्रिभुवन नारायण सिंह के पास मदद मांगने जाता है लेकिन विधायक जी किसी अपराधी की मदद करने से साफ इंकार कर देते हैं.

जेल में रहकर जीता चुनाव
विधायक के इनकार ने बाहुबली को राजनीति में इंट्री दिला दी. इसके बाद जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने वाला शहाबुद्दीन जेल में रहकर चुनाव लड़ता है और बाहुबली से माननीय विधायक जी का तमगा हासिल करता है. इसके बाद शहाबुद्दीन लालू का करीबी बनता गया. वहीं, आरजेडी शासन काल में बाहुबली का दबदबा और रसूख बढ़ता ही चला गया.

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